गणगौर रँगीले राजस्थान के मुख्य पर्वोँ मेँ से एक है । जिसका सम्बन्ध श्री पार्वती पूजा से है । हिन्दू धर्म मेँ स्त्रियाँ अपनी मनोकामनाओँ की पूर्ति के लिये देवी पार्वती की आराधना करती हैँ ।
श्री रामचरितमानस मेँ भी श्री सीताजी का अपने विवाह से पहले गिरिजा पूजन का वर्णन है
ईसर -गोर जो कि श्री शँकर और पार्वती के ही स्वरूप हैँ, राजस्थानी स्त्रियोँ की कोमल भावनाओँ की पूर्ति करने वाले आराध्य हैँ ।
होली के दूसरे दिन से शुरु होकर यह पर्व सोलह दिनोँ तक चलता है, जिसमेँ कुँवारी लडकियाँ अपने लिये ईसर जैसे ही वर की कामना करती हैं
बाडी वाला बाडी खोल, बाडी की किँवाडी खोल, छोरियाँ आईँ छे दूब लेण, गाकर दूब लाती हैँ और ईसर-गोर की पूजा दूब से करती हैँ वहीँ नवविवाहिता अपने अखँड सौभाग्य के लिये गणगौर पूजने का आग्रह करती है - म्हारी सखियाँ जोवै बाट, भँवर म्हाने खेलण द्यौ गणगौर -
गणगौर एवँ स्वयँ के लिये श्रृँगार की माँग भी उनका अधिकार है -माथा ने मैमँद पैरो गणगौर, कानाँ नै कुण्डल पैरो गणगौर, जी म्हेँ पूजाँ गणगोर - ईसर्दासजी भी नखराळी गणगोर की माँगेँ पूरी करते हैँ - ईसरदासजी ज्याजो समन्दर पार जी, तो टीकी ल्याजो जडाव की जी - एक विशेष प्रकार की चूँदडी की भी माँग है -ईसरजी ढोला जयपुर ज्याजो जी, बठे सुँ ल्याय ज्योजी जाली री चूँदडी, मिजाजी ढोला हरा-हरा पल्ला हो, कसूमल होवै जाली री चूँदडी, स्वयँ के लिये भी-म्हारा माथा नै मैमँद ल्याओ बालम रसिया, म्हारी रखडी रतन जडओ रँग रसिया, म्हारी आँखडली फरूकै बेगा आवो रँग रसिया
गणगौर का पर्व पति - पत्नी के अखंड प्यार का द्योतक है । इसके गीतोँ मेँ पति - पत्नी के बीच होने वाले मान - मनुहार का भी दर्शन है -
लूम्बी ल्याजो जी, ओजी म्हारा ईसरजी ओ उमराव जटाधारी लुम्बी ल्याजोजी ।लुम्बी मैँगी ए ओए म्हारी पातडली गनगोर गुमानण राणी लुम्बी मैँगी ए ।मैँगी सैँगी ल्याजोजी ओजी म्हारा इसरजी ओ भवतार जटाधारी मैँगी सैँगी ल्याजोजी ।
इसी प्रकार सारे गहनोँ की माँग है नहीँ तो गोराँ बाई रूसने की भी धमकी देती हैँ और ईसरजी अपनी रानी को मनाने के लिये मैँगी सैँगी भी लाने को तैयार हैँ ।
म्हारै बाबाजी रै माँडी गणगौर, सुसराजी रै माँड्यो रँग रो झुमकडो ।लेद्यो - लेद्यो नी नणद बाई रा बीर, लेद् यो हजारी ढोला झुमकडो ॥
झूठणा सोहे बहू गोराँदे रे कान, ईसरजी झूठणाँ मोल लिया ।गोरी एकरस्याँ म्हानै पहेर दिखाय , तनै किसा क सोवै झूठणा ।सायब पैराँ - पैराँ बार तिवार, म्हारे कानुराम परण्याँ पैरस्याँ ।
(झुमका शोभायमान हो रहा है गोराजी के कान मेँ, ईसरजी ने खरीदा है ।गोरी एकबार मुझे पहनकर दिखाओ कि झुमका तुम्हारे ऊपर कैसा लगता है ।सायब मैँ तो अच्छे दिन या त्योहार को पहनूँगी और मेरे कानीराम का विवाह होगा तब पहनूँगी ।
घर मेँ होने वाले माँगलिक कार्य के लिये लगाव एवँ रुचि भी है और तैयारी भी रखना चाहती हैँ ।
कहानी कहते - सुनते समय गौराँ बाई से अखँड सौभाग्य की तो कामना करती ही हैँ, साथ मेँ प्रसव पीडा से भयभीत होती हुई भी दिखती हैँ, किंतु मातृत्व के सुख को देख वो सँतान की कामना भी करती हैँ ।
गणगौर से माँग भी है -पुजो ए पुजावो सँइयोँ काँई-काँई माँगा, माँगा ए म्हेँ अन-धन लाछर लिछमी- जिसमेँ अपने पीहर परिवार का साथ और प्यार माँगती है -इतरो तो देई माता गौरजा ए, इतरो सो परिवार, देई तो पीयर सासरौ ए, सात भायाँ री जोड परण्याँ तो देई माता पातळा ए, साराँ मेँ सिरदार - आनंद और उमँग से गीत गाते हुए गणगौर के नख-शिख का वर्णन करते हुए, कभी झूला झुलाती हैँ - चम्पे री डाळ हिन्डोलो घाल्यो --- तो ले बाई गोरां ने साथ, जी म्हें हींडो घाल्यो - तो कभी साली बनकर सीठना भी देती है - ईसरजी तो पेचो बाँधे, गोरा बाई पेच सँवारे ओ राज, म्हेँ ईसर थारी साली छाँ, साली छाँ मतवाली ओ राज म्हेँ ईसर थारी साली छाँ - कहानी कहते समय गोराँ बाई से अखँड सौभाग्य की तो कामना करती ही हैँ, साथ मेँ पुत्र सुख की भी कामना है, गोराँ बाई ससुराल और पीहर के मान-सम्मान को भी बनाये रखती हैँ,गोराँ बाई का मोती जोगा भाग, उनकी आराधना से हमेँ भी सँपूर्ण गृहस्थी का सुख प्रदान करती है
No comments:
Post a Comment