Friday, January 30, 2009

ऊंट


रेगिस्तान के जहाज' के नाम से रणबांकुरों की धरती राजस्थान प्रदेश में विख्यात ऊंट, नाम लेते ही माल ढोने के काम आने वाले जानवर की तस्वीर सामने जाती है। यह सही भी है कि यह जानवर वास्तव में रेतीले धोरों के बीच रहने वाले लोगों के जीवन का एक अहम् हिस्सा है। राजस्थान का रेतीला क्षेत्र हो या सहारा का रेगिस्तान। यह ऊंट अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। लोगों के लिए वह समय आठवें आश्चर्य से कम नहीं होता जब यही ऊंट संगीत की धुन पर थिरक उठता है या फिर अपने आगे के पैर के दोनों घुटने मोड़कर लोगों के सामने सिर झुका देता है।

यही भीमकाय जब वेटर बनकर चाय की केतली लेकर स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि देशी-विदेशी पर्यटकों के पास पहुंचता है तो लोग 'वाह-वाह' कर उठते हैं और 'दांतो तले अंगुली दबाने' पर मजबूर हो जाते हैं। यही ऊंट देश की भारत-पाकिस्तान सीमा पर चौकसी कर रहे सीमा सुरक्षा बल के जवानों का भी एक 'हिस्सा' बने हुए हैं। जवान द्वारा दिन-रात की गश्त के दौरान ऊंट भी अपना 'सहयोग' किए बिना नहीं रहता है। ऊंट की इस भूमिका को आम लोगों के सामने लाने का श्रेय बीकानेर में गत 14 वर्षों से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले अन्तर्राष्ट्रीय ऊंट उत्सव को जाता है। उत्सव की शुरुआत पर्यटन विभाग द्वारा की गई थी। विभाग द्वारा गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को अपने इस उत्सव के बारे में बताया गया और उन्हें प्रेरित किया गया कि वे अपने ऊंट की इस अनछुए पहलू को देखें और फिर विकसित करें।

वह दिन है और आज का दिन 'ऊंट उत्सव' ने केवल भारत बल्कि विदेशों तक धूम मचा दी है। आज उत्सव के नाम पर बीकानेर में विदेशी पर्यटक रहे हैं जो पर्यटन के क्षेत्र में बीकानेर के लिए सुखद अहसास की अनुभूति है। पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक हनुमानमल आर्य बताते हैं कि उत्सव में वायुसेना सीमा सुरक्षा बल द्वारा भी हैरतअंगेज कारनामे दिखाए जाते हैं। उत्सव के दौरान ही समीपवर्ती गांव लाडेरा में ऊंटों की दौड़ प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है।

राजस्थान के देहाती क्षेत्रों में किसान की माली हालत सुधारने में अग्रणी रहे 'रेगिस्तान के जहाज' के नाम से कहलाने वाला 'ऊंट' उत्सव के बाद से लगातार अब देशी-विदेशी पर्यटकों में आकर्षण का केन्द्र भी बनता जा रहा है। बीकानेर के समीप ही एशिया के सबसे बड़े राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में ऊंट से आय का अच्छा जरिया बन रहा है। केन्द्र में आने वाले सैलानियों से होने वाली आय पिछले तीन वर्षों में दोगुनी हो गई है। जहां यूरोपीय देशों के पर्यटकों में ऊंटनी के दूध से बनी आइसक्रीम, कॉफी चाय को लेकर खासा उत्साह है तो दूसरे विदेशी सैलानियों को केन्द्र परिसर में प्रतिदिन शाम को इन तीनों उत्पादों का लुत्फ उठाते देखा जा सकता है।रेगिस्तानी राज्य के उत्तर में स्थित बीकानेर में अभी तक मध्ययुगीन भव्यता है। ऊंटों के देश के नाम से प्रसिद्ध यह शहर विश्व में बेहतर ऊंटों की सवारी के लिए भी विख्यात है।

अन्तर्राष्ट्रीय ऊंट उत्सव (10, 11, 12 जनवरी-बीकानेर)

होली-धमाळ

चेतो करल्यो रै - धमाळ

चेतो करल्यो रै, साथीड़ा सगळा एको करल्यो रै, चेतो करल्यो रै

जाट कमायो खावै आपको, दूजां नै नहीं भावै रै, मूंडा मीठी बात, पीठ पर छुरी चलावै रै चेतो करल्यो रै ..... ।।1।।

एका बिना अब पार पड़ै ना, आज टेम आई रै, ओरां कानी देखो, कैंयां शोर मचाई रै चेतो करल्यो रै ..... ।।2।।

धरती मां को लाल जाट, बो अन्नदाता कहलावै रै, जय जवान जय किसान को परचम पहरावै रै चेतो करल्यो रै।।3।। .....

जाळ रच रह्या जकानैं, मिलके सबक सिखायो रै, सांचै-मांचै राम राचै, "पदम" रो कह्यो रै चेतो करल्यो रै ..... ।।4

















राजस्थान में भी होली के विविध रंग देखने में आते हैं। बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो अजमेर में कोड़ा अथवा सांतमार होली कजद जाति के लोग बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। हाड़ोती क्षेत्र के सांगोद कस्बे में होली के अवसर पर नए हिजड़ों को हिजड़ों की ज़मात में शामिल किया जाता है। इस अवसर पर 'बाज़ार का न्हाण' और 'खाड़े का न्हाण' नामक लोकोत्सवों का आयोजन होता है। खाडे के न्हाण में जम कर अश्लील भाषा का प्रयोग किया जाता है। राजस्थान के सलंबूर कस्बे में आदिवासी 'गेर' खेल कर होली मनाते हैं। उदयपुर से ७० कि. मि. दूर स्थित इस कस्बे के भील और मीणा युवक एक 'गेली' हाथ में लिए नृत्य करते हैं। गेली अर्थात एक लंबे बाँस पर घुंघरू और रूमाल का बँधा होना। कुछ युवक पैरों में भी घुंघरू बाँधकर गेर नृत्य करते हैं। इनके गीतों में काम भावों का खुला प्रदर्शन और अश्लील शब्दों और गालियों का प्रयोग होता है। जब युवक गेरनृत्य करते हैं तो युवतियाँ उनके समूह में सम्मिलित होकर फाग गाती हैं।.