Friday, January 30, 2009

होली-धमाळ

चेतो करल्यो रै - धमाळ

चेतो करल्यो रै, साथीड़ा सगळा एको करल्यो रै, चेतो करल्यो रै

जाट कमायो खावै आपको, दूजां नै नहीं भावै रै, मूंडा मीठी बात, पीठ पर छुरी चलावै रै चेतो करल्यो रै ..... ।।1।।

एका बिना अब पार पड़ै ना, आज टेम आई रै, ओरां कानी देखो, कैंयां शोर मचाई रै चेतो करल्यो रै ..... ।।2।।

धरती मां को लाल जाट, बो अन्नदाता कहलावै रै, जय जवान जय किसान को परचम पहरावै रै चेतो करल्यो रै।।3।। .....

जाळ रच रह्या जकानैं, मिलके सबक सिखायो रै, सांचै-मांचै राम राचै, "पदम" रो कह्यो रै चेतो करल्यो रै ..... ।।4

















राजस्थान में भी होली के विविध रंग देखने में आते हैं। बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो अजमेर में कोड़ा अथवा सांतमार होली कजद जाति के लोग बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। हाड़ोती क्षेत्र के सांगोद कस्बे में होली के अवसर पर नए हिजड़ों को हिजड़ों की ज़मात में शामिल किया जाता है। इस अवसर पर 'बाज़ार का न्हाण' और 'खाड़े का न्हाण' नामक लोकोत्सवों का आयोजन होता है। खाडे के न्हाण में जम कर अश्लील भाषा का प्रयोग किया जाता है। राजस्थान के सलंबूर कस्बे में आदिवासी 'गेर' खेल कर होली मनाते हैं। उदयपुर से ७० कि. मि. दूर स्थित इस कस्बे के भील और मीणा युवक एक 'गेली' हाथ में लिए नृत्य करते हैं। गेली अर्थात एक लंबे बाँस पर घुंघरू और रूमाल का बँधा होना। कुछ युवक पैरों में भी घुंघरू बाँधकर गेर नृत्य करते हैं। इनके गीतों में काम भावों का खुला प्रदर्शन और अश्लील शब्दों और गालियों का प्रयोग होता है। जब युवक गेरनृत्य करते हैं तो युवतियाँ उनके समूह में सम्मिलित होकर फाग गाती हैं।.


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