Saturday, May 30, 2009

चित्तोड़ की महारानी पद्यमिनी


दुर्ग शिरोमणि चित्तोडगढ का नाम इतिहास में स्वर्णिम प्रष्टों पर अंकित केवल इसी कारण है कि वहां पग-पग पर स्वतंत्रता के लिए जीवन की आहुति देने वाले बलिदानी वीरों की आत्मोसर्ग की कहानी कहने वाले रज-कण विद्यमान है | राजस्थान में अपनी आन बान और मातृभूमि के लिए मर मिटने की वीरतापूर्ण गौरवमयी परम्परा रही है और इसी परम्परा को निभाने के लिए राजस्थान की युद्ध परम्परा में जौहर और शाको का अपना विशिष्ठ स्थान रहा है ! चित्तोड़ के दुर्ग में इतिहास प्रसिद्ध तीन जौहर और शाके हुए है |

दिल्ली
के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ की महारानी पद्मिनी के रूप और सोंदर्य के बारे में सुन उसे पाने की चाहत में विक्रमी संवत १३५९ में चितोड़ पर चढाई की | चित्तोड़ के महाराणा रतन सिंह को जब दिल्ली से खिलजी की सेना के कूच होने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने भाई-बेटों को दुर्ग की रक्षार्थ इकट्ठा किया समस्त मेवाड़ और आप-पास के क्षत्रों में रतन सिंह ने खिलजी का मुकाबला करने की तैयारी की | किले की सुद्रढ़ता और राजपूत सैनिको की वीरता और तत्परता से छह माह तक अलाउद्दीन अपने उदेश्य में सफल नही हो सका और उसके हजारों सैनिक मरे गए अतः उसने युक्ति सोच महाराणा रतन सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा कि मै मित्रता का इच्छुक हूँ ,महारानी पद्मिनी के रूप की बड़ी तारीफ सुनी है, सो मै तो केवल उनके दर्शन करना चाहता हूँ |
कुछ गिने चुने सिपाहियों के साथ एक मित्र के नाते चित्तोड़ के दुर्ग में आना चाहता हूँ इससे मेरी बात भी रह जायेगी और आपकी भी |

भोले
भाले महाराणा उसकी चाल के झांसे में आ गए | २०० सैनिको के साथ खिलजी दुर्ग में आ गया महाराणा ने अतिथि के नाते खिलजी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय खिलजी को किले के प्रथम द्वार तक पहुँचाने आ गए |
धूर्त खिलजी मीठी-मीठी प्रेम भरी बाते करता- करता महारणा को अपने पड़ाव तक ले आया और मौका देख बंदी बना लिया | राजपूत सैनिको ने महाराणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए बड़े प्रयत्न किए लेकिन वे असफल रहे और अलाउद्दीन ने बार-बार यही कहलवाया कि रानी पद्मिनी हमारे पड़ाव में आएगी तभी हम महाराणा रतन सिंह को मुक्त करेंगे अन्यथा नही |अतः रानी पद्मिनी के काका गोरा ने एक युक्ति सोच बादशाह खिलजी को कहलाया कि रानी पद्मिनी इसी शर्त पर आपके पड़ाव में आ सकती है जब पहले उसे महाराणा से मिलने दिया जाए और उसके साथ उसकी दासियों का पुरा काफिला भी आने दिया जाए | जिसे खिलजी ने स्वीकार कर लिया |

योजनानुसार रानी पद्मिनी की पालकी में उसकी जगह स्वयम गोरा बैठा और दासियों की जगह पालकियों में सशत्र राजपूत सैनिक बैठे | उन पालकियों को उठाने वाले कहारों की जगह भी वस्त्रों में शस्त्र छुपाये राजपूत योधा ही थे | बादशाह के आदेशानुसार पालकियों को राणा रतन सिंह के शिविर तक बेरोकटोक जाने दिया गया और पालकियां सीधी रतन सिंह के तम्बू के पास पहुँच गई वहां इसी हलचल के बीच राणा रतन सिंह को अश्वारूढ़ कर किले की और रवाना कर दिया गया और बनावटी कहार और पालकियों में बैठे योद्धा पालकियां फैंक खिलजी की सेना पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े अचानक अप्रत्याशित हमले से खिलजी की सेना में भगदड़ मच गई और गोरा अपने प्रमुख साथियों सहित किले में वापस आने में सफल रहा महाराणा रतन सिंह भी किले में पहुच गए |

छह
माह के लगातार घेरे के चलते दुर्ग में खाद्य सामग्री की भी कमी हो गई थी इससे घिरे हुए राजपूत तंग आ चुके थे अतः जौहर और शाका करने का निर्णय लिया गया | गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | पद्मिनी के नेतृत्व में १६००० राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया | थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया | जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया |

महाराणा
रतन सिंह के नेतृत्व केसरिया बाना धारण कर ३०००० राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया -
बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ | सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ || इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद १८ अप्रेल १३०३ को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके | उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |

यह इतिहास की घटना विश्व इतिहास की महानतम साहसिक घटनाओं में से एक है।

1 comment:

  1. chokho hai aapro kaam. mayad bhasha ri bhi seva karo sa.... mhare blogs par padharo sa...

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