Wednesday, February 4, 2009

कागलो


एक बार एक कागलो हो, बो इने-बिने फिरतो-फिरतो गरमी कारण तीसां मरण लाग्यो जणे अठिने-बठिने उडतो-उडतो पाणी कठई दिख जावे सोचतो-सोचतो भर गरमी मं थाकगो पण पाणी कठई नजर कोनी आयो, बो सोचण लागो जीवङा आज तो पाणी बिना मर जांवाला, भगवान् भली करे, एक माटी को घड़ो एक पेड़ नीचे पङ्यो नीजर आयगो, बी कागले री आंखां मं चमक आगी, अर बो तो घड़े काने उड़ान भरी अर जा बेठ्यो बी घड़े माथे अर बिमें झाँक घाली तो घड़े मं पाणी पिन्दे पङ्योङो दिख्यो अब बो सोचण लाग्यो घड़े को पाणी ऊपर कियां सके है, बो तिकडम बिठायी अर घड़े आरे-सारे पड्या कान्कारा एक-एक कर आपरी चांच सूं बी घड़े मं घालण लागो, थोड़ी भाँव मं पाणी ऊपर आयो जणे पाणी पियो और उडगो!

No comments:

Post a Comment